कई दफ़ा सोचा बतलाऊँ तुम्हें
अपने दिल की बात
बात जो नन्ही सी है
परंतु अर्थ उसका
क्षितिज तुल्य विशाल
मुझे तो केवल मलाल हैं इस बात का
न मैं कह सकी और न तुम समझ सके
जबकि अगल बगल के सभी लोग समझ गए
उस अनकही बात को
आज भी कभी जब
वह बात याद आती हैं
किसी तन्हा रैन को
रो लेती हूँ बस सोचकर यही
सबकी किस्मत में
दिल की बात पूरी होती नही
बात केवल इतनी सी हैं
यदि मिल जाते तुम मुझे
तो शायद........
मैं होती न इतनी अधूरी
©®@शकुंतला
फैज़ाबाद ।
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Saturday 31 March 2018
अधूरी -अनकही बात
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कहाँ खो गई हो तुम
कहाँ खो गई हो तुम.... आज भी मेरी नज़रे तुम्हें तलाशती हैं....... वो मासूम सी बच्ची खो गई कही जिम्मदारियों के बोझ से , चेहरे की रौनक, आँखों की...
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वाह... लाजवाब संप्रेषण आदरणीया...👌👌👌👏👏👏
ReplyDeleteबहुत आभार आदरणीय🌷
Deleteवाह !!! बहुत खूब .... शानदार रचना
ReplyDeleteप्रिय नीतू जी शुक्रिया🌹🌹
Deleteयदि मिल जाते तुम मुझे
ReplyDeleteतो शायद........
मैं होती न इतनी अधूरी
लाजवाब...
वाह!!!
शुक्रिया सुधा दी
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत आभार
Deleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/04/63.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत आभार आपका मेरी रचना को मित्रमंडली में स्थान दिया🌷🌷🌷
Deleteइस अधूरेपन में भी इतनी पूर्णता है कि इस्तनि गहरी बात इतने सरल शब्दों में सम्प्रेषित कर दिया अति सुंदर दीदी
ReplyDeleteसस्नेह धन्यवाद सुप्रिया🌹🌺🌹🌺
Deleteआज भी कभी जब
ReplyDeleteवह बात याद आती हैं
किसी तन्हा रैन को
रो लेती हूँ बस सोचकर यही
सबकी किस्मत में
दिल की बात पूरी होती नही
बात केवल इतनी सी हैं
यदि मिल जाते तुम मुझे
तो शायद........
मैं होती न इतनी अधूरी वाह बेहतरीन रचना शकुंतला जी
शुक्रिया अनुराधा जी आपकी इतनी अच्छी प्रतिक्रिया से लिखने का और भी मन करता हैं बहुत आभार🌹🌷
Deleteअनुपम अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर
🌷🌷शुक्रिया
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